दुनिया की भीड़ से अलग,
हरियाली बीच बैठा मैं.
मन कुछ सोचता,
पर प्रकृति में खोया मैं..
तभी एक चिड़िया चहचहाई,
मन का तानपुरा छिड़ गया !!
मैंने नज़रें उठाईं..
देखा तो एक डाल पर,
चिड़िया कुछ ठान कर,
घोंसला बनाने में लगी..
अचानक एक विचार कौंधा..
दुनिया के दस्तूर पर,
जो प्रकृति में स्थित,
अपने सहचरों का
ख़याल न रख रही थी..
मानव सुखों के लिए पेड़ कटे,
न जाने कितनों के घरौंदे टूटे..
इंसान ने
अपने घरों को बसाया,
दूसरों के आशियानों को जलाया..
जंगल के जंगल कटे,
असंख्य जानवर घटे..
आज यह घोंसला बनेगा,
कल शायद यह पेड़ भी कटेगा..
दूसरों के घर उजाड़कर,
ईंट-पत्थरों का नया शहर बसेगा..
इस सोच में डूबे हुए
लगा किसी ने मुझे पुकारा
वह पेड़ था..
वह चिड़िया थी..
या मेरे दिल की आवाज़ थी........