आपको सोचकर सारी रात आँखों में काट दी,
और आप ऐसे हैं कि
मुझे
अपने सपनों तक में न आने दिया.
उठ खड़ा हुआ मन मेरा
चल दिया आप की ओर
न जाने कौन खींच रहा था उसे
जैसे कोई पतंग डोर........
कुछ पलों में मन मेरा पहुंचा आपके करीब,
वहां पता चली उसे वह बात जो थी अजीब!!
पता चला के हम पर तो आपके सपनों में आने तक की रोक थी,
अब नींद आनी थी कहाँ जब मन में गहरी चोट थी.
शुक्र है कम से कम यह तन्हाई तो अपने पास थी,
एक हमसफ़र बनकर वह सारी रात अपने साथ थी.
नींद को छोड़ा मैंने और उसको बाँहों में लिया......
क्योंकि नींद आनी थी कहाँ जब आपने सोने न दिया...!!!!
अच्छी लगी रचना आपकी मुवारक हो
ReplyDeletekoun hai..jisnay itni achchee line likhva dee..mujhay batao mai bhi kavi banna chahta hoon
ReplyDeleteवाह! क्या बात है, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, अपने अन्दर के खजाने को निकालिए मनीष जी !
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